ख़ुद को मजनूँ, कभी फ़रहाद किया है मैंने
वक़्त अपना बड़ा बरबाद किया है मैंने
एक पत्थर सिफ़त इंसां से मुहब्बत करके
ऐ ग़मे दिल तुझे ईजाद किया है मैंने
शाखे दिल पर तिरी यादों का बसेरा क्यूँ है
इन परिन्दों को तो आज़ाद किया है मैंने
इक इबादत से कहाँ कम है मुहब्बत मेरी
उस को आयत की तरह याद किया है मैंने
यूँ खिलाया है तेरे दिल में मुहब्ब्त का गुलाब
दश्त जैसे कोई आबाद किया है मैंने
हुक्मरानी पे जिसे नाज़ बहुत था ख़ालिद
उस को आमादये फ़रयाद किया है मैंने
ख़ालिद अख़लाक़
दिल्ली , भारत
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